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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी<br>
इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी<br><br>
मैं भी शहरे-वफ़ा में नौवारिद<br>
वो भी रुक रुक के चल रही है अभी<br><br>
मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद शनास<br>
वो भी लगता है सोचती है कभी<br><br>
दिल की वारफतगी है अपनी जगह<br>
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी<br><br>
गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं<br>
फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी<br><br>
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता<br>
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी<br><br>
खुद-कलामी में कब ये नशा था<br>
जिस तरह रु-ब-रू कोई है अभी<br><br>
कुरबतें लाख खूबसूरत हों<br>
दूरियों में भी दिलकशी है अभी<br><br>
फ़सले-गुल में बहार पहला गुलाब<br>
किस की ज़ुल्फ़ों में टांकती है अभी<br><br>
सुबह नारंज के शिगूफ़ों की<br>
किसको सौगात भेजती है अभी<br><br>
मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख्म<br>
दाग शायद कोई कोई है अभी<br><br>
मुद्दतें हो गईं फ़राज़ मगर<br>
वो जो दीवानगी थी, वही है अभी<br><br>
'''नौवारिद''' - नया आने वाला, '''ज़ूद-शनास''' - जल्दी पहचानने वाला<br>
'''वारफतगी''' - खोया खोयापन, '''इज्तिनाब''' - घृणा, अलगाव<br>
'''सुपुर्दगी''' - सौंपना, '''खुदकलामी''' - खुद से बातचीत, '''शिगूफ़े'''- फूल, कलियां<br>


'''चश्मे-पुर-खूं''' - खून से भरी हुई आँख<br>
'''आबे-जमजम''' - मक्के का पवित्र पानी<br>
'''अबस''' - बेकार, '''सानी''' - बराबर, दूसरा<br>
'''कामत''' - लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)<br>
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