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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=चन्द्रबली सिंह
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[[Category:तुर्की भाषा]]
<poem>
बैठो, अरे बैठो तो, दोस्तो,
स्वागत तुम्हारा है,
मुझे मालूम है कि जब मैं सोता रहा
तुम खिड़की से मेरी कोठरी में चले आए
लम्बी गर्दन वाली दवा की शीशी को गिराया नहीं
गोलियों के डिब्बे को गिराया नहीं ।

मेरी खाट के सामने खड़े होकर तुम
तारों की रोशनी में चमकते चेहरे लिए
एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़े हो
स्वागत तुम्हारा है, दोस्तो !

क्या यह कुछ अजब सी बात नहीं ?
मैं सोचता था तुम मर चुके
और चूँकि स्वर्ग या नरक में, ईश्वर में
मुझे विश्वास नहीं,
मैं सोचता था : ’बुरी बात हुई
इसका भी मौक़ा मुझे नहीं मिला
कम से कम तुम्हें एक सिगरेट तो दे पाता ।’

क्या यह कुछ अजब सी बात नहीं ।
मैं सोचता था तुम मर चुके !
खिड़की से तुम मेरी कोठरी में चले आए
बैठो, अरे बैठो तो, दोस्तो,
स्वागत तुम्हारा है !

मुझे देख भौंहें क्यों चढ़ाते हो,
ओ हाशिम, उस्मान के बेटे ?
क्या यह कुछ अजब सी बात नहीं
कहो भाई, क्या तुम्हारी मौत नहीं हुई थी ?

इस्ताम्बूल के बन्दर (गाह) में
एक विदेशी जहाज़ में कोयला लादते वक़्त
अपनी कोयले से भरी खचिया लिए
क्या तुम उसके ’होल्ड’ में जा गिरे थे ?

तुम्हारे मुरदा शरीर को ’विञ्च’ ने उठाया था,
और इस दुनिया को छोड़ने से पहलें
तुम्हारा काला सिर
किस तरह तुम्हारे लाल ख़ून से नहाया था ।

कौन कहे कितनी तकलीफ़ तुम्हें हुई होगी ?
खड़े मत रहो, कृपा कर बैठ जाओ,
मैंने सोचा था – तुम मर गए ।

खिड़की से तुम मेरी कोठरी में चले आए
तारों की रोशनी में चमकते चेहरे लिए,
स्वागत तुम्हारा है, दोस्तो !

आहो, याकूब राकी गाँव वाले,
तुम मेरी आँखों के तारे रहे,
क्या तुम भी मरे नहीं ?

क्या अपने बच्चों को छोड़कर
उन्हें अपना जूड़ी बुखार और भूख देखकर
गरमी में एक दिन
तुम एक तृणहीन क़ब्रिस्तान में नहीं गाड़े गए ?
तो तुम भी मरे नहीं !

और तुम,
अहमद जमील, लेखक,
मैंने इन्हीं आँखों से देखा था
क़ब्र में तुम्हारा जनाज़ा उतारा गया !

मुझे यह भी लगा था
तुम्हारा ताबूत ज़रा, छोटा था ।

अलग करो वह बोतल, अहमद जमील !
अभी तक तुम्हारी बुरी आदत नहीं छूटी ?
उसमें दवा है, वह राक़ी की बोतल नहीं ।

प्रतिदिन पचास सेण्ट पैदा करने के लिए
और इस अकेली दुनिया को भूलने के लिए
कितनी शराब तुम पीते थे !
मैंने सोचा था – तुम मर गए ।

मेरी खाट के सामने खड़े होकर तुम
एक-दूसरे का हाथ थामे हो ।
बैठो, अरे बैठो तो, दोस्तो,
स्वागत तुम्हारा है !

किसी प्राचीन फ़ारसी कवि का कहना है –
मौत इनसाफ़ किया करती है
सब पर एक ही शान से वार करती है –
राजा हो या रंक ।

हाशिम,
तुम्हें ताज्जुब होता है ?
अरे भाई, तुमने क्या कभी यह नहीं सुना
कैसे एक शाह था, जो कोयले की खचिया लिए
माल लादने के जहाज़ में मर गया ?

किसी प्राचीन फ़ारसी कवि का कहना है –
मौत इनसाफ़ किया करती है –

याकूव, जो मेरी आँखों के तारे रहे,
कैसे खुलकर मुस्कराए तुम !

इस तरह अपनी ज़िन्दगी में कभी
नहीं मुस्कराए तुम –
लेकिन मुझे बात ख़त्म करने दो
हाँ तो, किसी प्राचीन फ़ारसी कवि ने कहा –
मौत इनसाफ़ किया करती है –
धर दो, उस बोतल को, अहमद जमील !

तुम नाहक ही, गुस्सा करते हो ।
मुझे मालूम है – मौत इनसाफ़ किया करती है ।

तुम कहते हो – ज़िन्दगी को भी इनसाफ़ करना था ।
किसी प्राचीन फ़ारसी कवि ने ...।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह'''
</poem>
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