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तितली के जूते / कुमार कृष्ण

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|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
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<poem>
'तुम थे सबसे मजबूत तलवार
आस्था का, विश्वास का पहाड़
तुम थे सबसे सुरक्षित द्वार
वह आई थी तुम्हारा जन्म-दिन मनाने
कई दिनों से कह रही थी बार बार
हम चलेंगे गॉड जी के बर्थ डे पर
कहाँ है वो, ले आओ उसे हमारे पास'
कई दिनों तक रोते रहे
करते रहे इन्तजार मंदिर की चौखट पर
तितली के जूते
विश्वास से भरे जूते समझते थे
वह लौट आएगी उनके पास
जूते समझते थे-
ईश्वर का घर है सबसे सुरक्षित घर
इस धरती पर
जूते नहीं जानते थे-
उसे ले गया था पाँच मुँह वाला जानवर
अपनी लम्बी बाहों से खींच कर
धरती के शब्दकोश में दर्ज है उस जानवर का नाम
आदमी की सूची में
वह थी फूल की तरह खूबसूरत
माँ पुकारती थी हमेशा तितली कह कर
तितली नहीं जानती थी दुनिया की पाठशाला
नहीं जानती थी-
पाँच मुँह वाले जानवर की भूख
माँ ने बताया था उसे-
ईश्वर है अन्तरयामी वह है सर्वशक्तिमान
वह है हमारे बुरे वक्त का साथी
रोती रही माँ रोते रहे पिता
उनके पास बचा था बस आँसुओं का नमक
रोते रहे लगातार तितली के जूते
देखते रहे ईश्वर की आँखें
माँ बनने लगी नदी पिता हँसुआ होने लगे धीरे-धीरे
तितली के जूते तितली में बदल गए
तितलियों का होने लगा कायान्तरण
कुछ तितलियाँ बर्रे में बदल गईं
कुछ भृंगी में
कुछ बन गईं मधुमक्खियाँ
टूट पड़ीं मिलकर पाँच मुँह वाले जानवरों पर
निरन्तर जारी है जूतों का कायान्तरण
शामिल हैं धरती के तमाम जूते
इस लड़ाई में।

</poem>