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बुद्ध - 1 / कल्पना मिश्रा

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<poem>
बु़द्ध
जिस क्षण तुमने त्याग दिया था
राजमहल, अपनी स्त्री और पुत्र को
जिस क्षण उमड़ी थी इतनी करुणा
कि हार गई थी मोह-माया
देख किसी वृद्ध को
जिस क्षण सब क्षणभंगुर लगा था
वही क्षण था बुद्धत्व का
कड़ी तपस्या के बाद
ज्ञान की प्राप्ति तो केवल
निर्वाण था,
जिस क्षण जान गए
सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय को
वही क्षण था बुद्धत्व का।
बुद्ध, तुम मौन रहे
साधते रहे हर क्षण खुद को
जीतते रहे स्वयं को
हराते रहे कामनाओं को
जो पा ले ये जब
बन सकता है बुद्ध!!
</poem>