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{{KKRachna
|रचनाकार=कल्पना मिश्रा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
गरीब के पैदा होने पर जश्न
और मरने पर मातम नहीं होता ।
गरीब का कोई वजुद नहीं होता
उसकी गरीबी का वजुद होता है ।
गरीब की कोई ईज्जत नहीं होती
कोई भी, कभी भी, किसी भी बात पर
उसे धुत्कार सकता है ।
गरीब का कोई सपना नहीं होता
दो जून की रोटी उसके सारे सपने
खरीद लेती है ।
गरीब का अपना कुछ नहीं होता,
सिवाय उसकी गरीबी के
गरीब के पास अभिव्यक्ति का कोई माध्यम
नहीं होता
जिसमें वह अपनी दबी कुचली जिंदगी
का फलसफा लिख सके ।।
</poem>
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|संग्रह=
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गरीब के पैदा होने पर जश्न
और मरने पर मातम नहीं होता ।
गरीब का कोई वजुद नहीं होता
उसकी गरीबी का वजुद होता है ।
गरीब की कोई ईज्जत नहीं होती
कोई भी, कभी भी, किसी भी बात पर
उसे धुत्कार सकता है ।
गरीब का कोई सपना नहीं होता
दो जून की रोटी उसके सारे सपने
खरीद लेती है ।
गरीब का अपना कुछ नहीं होता,
सिवाय उसकी गरीबी के
गरीब के पास अभिव्यक्ति का कोई माध्यम
नहीं होता
जिसमें वह अपनी दबी कुचली जिंदगी
का फलसफा लिख सके ।।
</poem>