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|रचनाकार=राहुल द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कुछ टूटन की आवाज़ सुनी है
कुछ-कुछ तन्हा कुछ उदास
कुछ धुंधलके-सा मद्धम
कुछ बेहद ख़ास
कुछ अनसुलझे से परत
कुछ बेवजह सी बात
कुछ दिल की गहराइयों तक
घुसते हुए आघात
कुछ कहना था पर
कुछ सुनना था पर
कुछ गुनना था पर
सिमट से गये अब
सारे जज्बात!
</poem>
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|संग्रह=
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कुछ टूटन की आवाज़ सुनी है
कुछ-कुछ तन्हा कुछ उदास
कुछ धुंधलके-सा मद्धम
कुछ बेहद ख़ास
कुछ अनसुलझे से परत
कुछ बेवजह सी बात
कुछ दिल की गहराइयों तक
घुसते हुए आघात
कुछ कहना था पर
कुछ सुनना था पर
कुछ गुनना था पर
सिमट से गये अब
सारे जज्बात!
</poem>