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नागार्जुन से / शील

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<poem>
तुम्हारा तो ...
लोहा मान गए,
पितरपक्षीय सभ्यता के लोग ।
आज नहीं तो कल –
परखेंगे - सूँघेंगे, संस्कृति की गन्ध ।

तुम्हारा तो –
लोहा मान गए,
हज़ार-हज़ार चुनौतियों के प्रश्न ।
पक्ष या विपक्ष ...
अपनपौ या विपनपौ में रहे ।
बात की बात रही – भाई नागार्जुन !

जीओ सौ वर्ष पूरे, कालबद्ध करते ।
मेरा लोहा ...
लोक-जीवन की जठराग्नि में तप रहा है
लाल हो रहा है, भाई नागार्जुन !

31 दिसम्बर 1988
</poem>
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