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पड़ोसियों के दुआरे पर जा कहते —
“ चलॶ “चलॶ हो चाची , गीत गावे के बुलाहटा हव् ” हव”
गांव में विवाह के लगभग पाँच दिन पूर्व ही घर शादी के माहौल में झूमने लगता है!
हर शाम आँगन में गूँजने लगता है वो मधुर स्वर —
“ अँखिया “अँखिया के पुतरी हईं , बाबा के दुलारी.. माई कहे जान हऊ .. तू मोर हो ”
आखिर त्याग की क्या परिभाषा हो सकती है?
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