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हर रोज़ की तरह तुम आज भी उठी होंगी
सुबह-सवेरे, भोर में, तड़के,
गिरजे की घण्टियाँ बजने से पहले ही
तुमने सारा घर साफ़ किया होगा, फिर तुम नहाई होंगी
और घर में शेष बचे सभी लोगों के लिए खाना बनाया होगा ।
हर शाम मैं तुम्हें देखता हूँ
तुम लौटती हो बाज़ार से,
सिर पर भारी टोकरियों का बोझ लेकर ।
माँ ! मेरे मन में सवाल उठता है —
क्या अब तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए
सख़्त मेहनत से छुटकारा नहीं पा लेना चाहिए ?
मैं उदास हूँ, माँ पलेम !
मैं तुमसे विरासत में कुछ ले नहीं पाया
न स्थिर जीवन जीने का तुम्हारा तरीका और न खाना पकाने का तुम्हारा कौशल ।
मुझे माफ़ कर दो, माँ !
मैं तुम्हारे वे सपने पूरे नहीं कर पाया
कि तुम बिताना चाहती थीं अपने बचे हुए दिन शान्ति से।
मैं एक छोटा आदमी निकला
जिसके सपने छोटे - छोटे हैं,
और जो अपने उन छोटे - छोटे सपनों के साथ
अपना छोटा सा जीवन जी रहा है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए'''
Robin S Ngangom