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{{KKRachna
|रचनाकार=सुबोध सरकार
|अनुवादक=दिविक रमेश
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पढ़ता नहीं कविता
मछली का व्यापारी,
ना ही
पढ़ता है कविता
शहद का व्यापारी,
मरणासन्न युवक
तुम भी तो नहीं पढ़ते कविता !
ना ही पढ़ते हैं ज्योति बाबू कविता ।
पढ़ते नहीं कविता
छापने वाले भी, संकलन कविताओं के ।
पढ़ते नहीं कविता
विश्वविद्यालतों के आचार्य भी ।
तो क्या
पढ़ते हैं हर कविता, दानव ही ?
तो क्या
ख़रीदते हैं दानव ही
पुस्तकें कविताओं की ?
'''अनुवाद : दिविक रमेश'''
</poem>
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|अनुवादक=दिविक रमेश
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}}
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पढ़ता नहीं कविता
मछली का व्यापारी,
ना ही
पढ़ता है कविता
शहद का व्यापारी,
मरणासन्न युवक
तुम भी तो नहीं पढ़ते कविता !
ना ही पढ़ते हैं ज्योति बाबू कविता ।
पढ़ते नहीं कविता
छापने वाले भी, संकलन कविताओं के ।
पढ़ते नहीं कविता
विश्वविद्यालतों के आचार्य भी ।
तो क्या
पढ़ते हैं हर कविता, दानव ही ?
तो क्या
ख़रीदते हैं दानव ही
पुस्तकें कविताओं की ?
'''अनुवाद : दिविक रमेश'''
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