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Kavita Kosh से
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने
काले घर में सूरज चलकेरख के, तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे.
मैने एक चराग जलाकर रोशनी कर ली,
तुमने एक समन्दर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया,
मैने नोह नूह की कश्ति कश्ती उस के ऊपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,