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14:52, 13 जुलाई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनीता सैनी
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<poem>
समय दरिया में डूब न जाऊँ माझी
पनाह पतवार में जीवन पार लगाना है
भावनाओं के ज्वार-भाटे से टकरा
अंधकार के आँगन में दीप जलाना है।
शांत लहरों पर तैरते पाखी के पंख
परमार्थ के अलौकिक तेज से बिखरे
चेतना की चमक से चमकती काया
उस पाहुन को घरौंदे में पहुँचाना है।
चराचर की गिरह से मुक्त हुए हैं स्वप्न
शून्य के पहलू में बैठ लाड़ लड़ाना है
अंतस छिपी इच्छाओं का हाथ बँटाते
आवरण श्वेत जलजात से करना है।
नदी के गहरे में बहुत गहरे में उतर
अनगढ़ पत्थरों पर कविता को गढ़ते
सीपी-से सत्कर्म कर्मों को पहनाकर
झरे मृदुल वाणी ऐसा वृक्ष लगाना है।
</poem>