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सभी बहुत भाते मुझको
बनकर मोर खूब नाचता ।
कोयल बनकर मैं गाता।गाता।।
दुनिया बँटी हुई धर्म की,
नफरत के अँधियारो में ।
घर-गली में गाँव - नगर में
भाईचारा फैलाता
अमन-चैन घिरे खतरों में
रूप बदलते नए-नए ।
पीर हरूँ हर प्राणी की
सिर्फ़ यही मन में आता।आता…
'''-0-(8-6-87,नूतन जैन पत्रिका-मार्च 88, नवभारत 19-2-1995)
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