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{{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी }}
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महसूस ये भी करते हैं,क्या जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

अंबर का दिल तड़पता जब गिरते अथाह आंसू, <br>
ले जाता है बहाकर सब, क्या जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

सागर का गम उबलता जब आतीं सुनामी लहरें, <br>
ले लेता लाखों जानें , क्या तुम जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

तूफ़ानी ये हवाएं कहतीं तड़प-तड़प के, <br>
करतीं हैं नष्ट कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

धरती भी दुख अपना कहती हिला के तुमको, <br>
करती तबाह कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

बादल भी रूठ जाते जब,इक बूंद को तरसते हम, <br>
मचती है त्राहि-त्राहि क्या तुम जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

मौसम का असर है इन पर भी,हंसते कभी ये झरते तरु, <br>
जमता कभी पिघलता हिम , क्या जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>

कहते हो जड़ जिन्हें हो तुम,बेहतर कहीं हैं हमसे, <br>
सहते हैं ज़ुल्म कितना ये?क्या तुम जानते नहीं? <br>
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br>
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