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अनाज उगाया करते थे, हल चलाया करते थे,
भरपेट रोटियों के लिए तरसा करते थे,
फिर ब्रितानिया हुकूमत आई, वे लाल वर्दी वाले सिपाही हो गए
वे बीहड़ में बन्दूक लेकर भाग गए,
अपने ही बाग़ी भाई को ढूँढ़-ढूँढ़कर मारने लगे
कहते हैं उन बाग़ियों की आत्मा आज भी चम्बल में भटकती है
बकौल फ़ौज ये सुखी हैं
भूत-भविष्य दोनों से…
पर भर्ती उनके जीवन में शंकराचार्य के मोक्ष की तरह थीवे कुछ भी छोड़ सकते थे पर भर्ती देखना नहीं छोड़ सकते थे
वे भर्ती देख रहे हैं…
वे नंग-धड़ंग गालियाँ खाते हुए
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