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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=
}}

<Poem>
लड़ रहा हूँ लेकिन
पूरी तरह लड़ने की स्थिति में नहीं हूँ

जी रहा हूँ लेकिन
पूरी तरह जीने की स्थिति में नहीं हूँ

मर रहा हूँ लेकिन
पूरी तरह मरने की स्थिति में नहीं हूँ

माँ ज़िन्दा है और अब चल नहीं पा रही है
और परिवार...

माफ़ करें मेरे पास कोई और रास्ता नहीं
थोड़ा और इंतज़ार करें

</poem>