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|रचनाकार=शिव कुमार बटालवी
|अनुवादक= अनिल जनविजय
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माये नी माये
मैं इक शिकरा यार बनाया
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया

(शिकरा एक पक्षी का नाम है जो मांस खाता है, उसका उदाहरण लेकर शिव कहते हैं कि उनकी प्रेमिका उस शिकरा पक्षी की तरह थी। जिसके सिर पर कलगी है और पैरों में पायल है। वह पक्षी दाना चुगते हुए उनके क़रीब आ गया था)

इक ओदे रूप दी धुप तिखेरी
दुजा महकां दा तिरहाया
तीजा ओदा रंग गुलाबी
किसे गोरी मां दा जाया

(एक तो उसका रूप तीखी धूप की तरह बहुत सुंदर है। दूसरा किसी इत्र के समान महकता है और तीसरा उसका गुलाबी रंग है। इसे देखकर लगता है कि उसका मां भी गोरे रंग वाली होगी)

इश्के दा इक पलंग नवारी,
असां चानन्नियां विच डाया
तन दी चादर हो गई मैली
उस पैर जां पलंगे पाया

(उसके लिए इश्क़ का एक पलंग तैयार किया, जिसे चांद की रौशनी में बिछाया। जैसे ही उसके पैरों ने उसे छुआ उससे तन मैला हो गया)

दुखण मेरे नैनां दे कोये
विच हाड़ हंजुआं दा आईया
सारी रात गई विच सोचां
उस ए कि जुल्म कमाया

(मेरी आँखों में देर तक रोने की वजह से दर्द होने लगा है। उनमें आँसुओं की बाढ़ आ गई है। सारी रात मैं, बस, यही सोचता रहा कि मैंने ये अत्याचार आख़िर क्यों अपने ऊपर ले लिया)

सुबह सवेरे लै नी वटणा
असा मल मल ओस नव्हाया
देही दे विचों निकलण चींगां
ते साडा हाथ गया कुम्हलाया

(मैंने सुबह सवेरे साबुन की बट्टी लेकर उसको ख़ुद पर मला और नहाया। उसके बाद जो भी मेरे बदन से निकला उससे मेरा हाथ भी कुम्हला गया)

चूरी कुट्टां तां ओ खांदा नाही
ओन्हुं दिल दा मांस खवाया
इक उडारी ऐसी मारी
ओ मुड़ वतनी ना आया

(वो शिकरा दाना और चोकर तो नहीं खाता, इसलिए मैंने उसे दिल का मांस खिलाया है। उसने एक ऐसी उड़ान भरी कि वो फिर लौटकर नहीं आया)

ओ माये नीं
मैं इक शिकरा यार बनाया
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया

''' मूल पंजाबी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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