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लाकडाउन / राजेश अरोड़ा

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<poem>
सब खो गया है
समय, प्यार और सानिध्य
दीवारो के उस पार
क्या हो रहा होगा
हम नहीं जान पा रहे है
आकाश साफ़ है
पंछी अब भी उड़ रहे हैं
लेकिन पार्को में बच्चे नहीं हैं
खाली है सड़कें
कभी कभी
पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज
तोड़ती है चुप की भयावता
दीवार से सटा बैठा बुड्ढा
घबरा कर
कुछ और चिपक जाता है दीवार के साथ
सब कुछ ठीक है
लोग सरकारी आदेश का पालन कर रहे हैं
घर में बैठे कुछ लोग लिख रहे हैं कविता
कविता परिणाम है
उनकी संवेदना का
सरकार और उसके लोग
निभा रहे हैं
अपना कर्तव्य

दीवारों पर रेंग रहा काक्रोच
सीली लकड़ी को खोखला करती
दीमक निर्विकार है

बच्चा अचंभित है
ये सब ऐसा क्यों है
</poem>
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