भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कुमार केशरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेश कुमार केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पिता ने अपने बेटों को पढ़ाया-
लिखाया
उन्हें इस काबिल बनाया कि
वो दुनियाँ के एक सभ्य
इंसान बन पाए

धीरे - धीरे बच्चे बडे़
हो गये पहली से लेकर
दसवीं
तक के दस साल
फुर्र से उड़ गये

ये वह समय था, जब
पिता अपने बच्चों की हर
जरुरतों को पूरा करते रहे

बच्चे भी बडे़ होनहार निकले
दोनों इंँजीनियर बन गए

पिता अपनी ख़ुशी रोक नहीं
पा रहे थे
उन्हें लगा वह दुनियाँ के सबसे
ख़ुशनसीब इंसान हैं

उन्होंने पा लिया हो
जैसे स्वर्ग
की सारी ख़ुशियाँ

कि उनसे ज़्यादा संपन्न
व्यक्ति अब कोई
इस दुनिया में
नहीं है

बेटे अब विदेश चले
गए
वहीं जाकर
धीरे- धीरे सेटल
हो गये

शुरू- शुरू में बच्चे
पर्व- त्योहारों में
घर आते तो पिता
ख़ुश हो जाते

उन्हें लगता कि जैसे
फिर से आबाद हो गया हो
घर

कुछ दिनों बाद बच्चे
चले जाते
फिर पिता मायूस
हो जाते

धीरे-धीरे बच्चों ने
पर्व- त्योहारों में भी
घर आना बंँद कर दिया

अब उनके पास वक्त
नहीं था पिता के लिए!
वो धीरे-धीरे घर को
भी भूलते जा रहे थें

पिता जब भी फ़ोन करते
बच्चे अपनी व्यस्तता
गिनवाते
समय के अभाव होने
की बातें-दोहराते

किसी ऐसे समय ही
पिता ने अपने जीवित
होने के बावजूद करवा
लिया था अपना
श्राद्ध!

अखबार में ये घटना
बड़ी प्रमुखता से छपी थी
कि एक व्यक्ति ने
जीते-जी करवा लिया है
अपना श्राद्ध!

सोचो क्या बीती
होगी उनको
अपने जीते-जी
करवाते हुए
अपना श्राद्ध!
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,500
edits