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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयदेव नारायण साही
|अनुवादक=
|संग्रह=साखी / विजयदेव नारायण साही
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आओ अपनी उलझनों की एक दस्तावेज़ तैयार करें
सिरनामे पर लिखें :
हमें आज तक कुछ नहीं बताया गया
तमाम वारदातें हमारी अनुपस्थिति में होती रहीं
और हर वारदात का निशाना हमारी ही ओर था ।
हमारे न चाहते हुए भी
सिरनामे का यह बयान आगे बढ़ता ही जाएगा ।
क्योंकि उन वारदातों के लक्ष्य बार-बार
हमीं क्यों हो जाते हैं, यह बात भी
सिरनामे में ही कहने की है
दस्तावेज़ के पेट में नहीं ।
लेकिन मुश्किल यही है कि फिर यह बयान
सिरनामा न रह कर दस्तावेज़ ही हो जाएगा।
यहाँ पहुँचकर हम महसूस करेंगे
कि हमारी उलझनों की दस्तावेज़ें हो सकती हैं
लेकिन सटीक सिरनामा लिखने में हम असमर्थ हैं
शायद हमारी उलझनों में
एक उलझन यही है ।
हर बार हमारी दस्तावेज़ का
सिरनामा (शीर्षक) ग़लत हो जाता है
नतीजा यह है कि हर बार हमारी दस्तावेज़
ग़लत दफ़्तरों में पहुँच जाती है
जहाँ उस पर कोई विचार नहीं होता
सिर्फ़ हर दफ़्तर में
मुतफ़र्रिक़ात (विभिन्नता, पृथकता) की मिसिल (फ़ाईल)
दबीज़ होती जाती हैं ।
</poem>
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|संग्रह=साखी / विजयदेव नारायण साही
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आओ अपनी उलझनों की एक दस्तावेज़ तैयार करें
सिरनामे पर लिखें :
हमें आज तक कुछ नहीं बताया गया
तमाम वारदातें हमारी अनुपस्थिति में होती रहीं
और हर वारदात का निशाना हमारी ही ओर था ।
हमारे न चाहते हुए भी
सिरनामे का यह बयान आगे बढ़ता ही जाएगा ।
क्योंकि उन वारदातों के लक्ष्य बार-बार
हमीं क्यों हो जाते हैं, यह बात भी
सिरनामे में ही कहने की है
दस्तावेज़ के पेट में नहीं ।
लेकिन मुश्किल यही है कि फिर यह बयान
सिरनामा न रह कर दस्तावेज़ ही हो जाएगा।
यहाँ पहुँचकर हम महसूस करेंगे
कि हमारी उलझनों की दस्तावेज़ें हो सकती हैं
लेकिन सटीक सिरनामा लिखने में हम असमर्थ हैं
शायद हमारी उलझनों में
एक उलझन यही है ।
हर बार हमारी दस्तावेज़ का
सिरनामा (शीर्षक) ग़लत हो जाता है
नतीजा यह है कि हर बार हमारी दस्तावेज़
ग़लत दफ़्तरों में पहुँच जाती है
जहाँ उस पर कोई विचार नहीं होता
सिर्फ़ हर दफ़्तर में
मुतफ़र्रिक़ात (विभिन्नता, पृथकता) की मिसिल (फ़ाईल)
दबीज़ होती जाती हैं ।
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