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<poem>
हमें पूछते हो
हम गीत भला क्यों गाते हैं
गीत गा रहे
हम अपनी मुस्कान बचाने को

हमें बचाना है फूलों,
गंधों से बतियाना
नदी, पहाड़ों, उद्यानों
मेघों का हो जाना

बहुत किये हैं
दुनिया ने रंगों के बँटवारे
हम गाते हैं
रंगों की पहचान बचाने को

अँगुलिमाल को दया-धर्म
हमको समझाना है
चंड अशोकों के अंतर में
बुद्ध जगाना है

नित्य बढ़ रही है
इंसानों में जँगली फ़ितरत
गीत गा रहे
अंदर का इंसान बचाने को

हम तो अपनी बंद खिड़कियाँ
ख़ुद ही खोलेंगे
सारे प्रतिबंधों का उत्तर
देंगे, बोलेंगे

सपनों का दम घोंट नहीं
पायेगा अब पिंजरा
गीत गा रहे
हर दिन नयी उड़ान बचाने को
</poem>
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