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शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान। दीप निशा का साथी बनता तम से घिरा तनिक ना डरता तूफ़ानों से आँख मिलाए संग हवा के झूमे जाए पर ना न जाने प्रिय की पीर प्रेम का कर न सका प्रतिदान। शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा तन-मन तुमने मुझ पर वारा प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ तम की सीमा पर सुन प्यारे प्रहरी सजग तू मुझको जान। शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान। जब तक मुझमें ज्योति है ये राह दिखाना ही , बस , ध्येय जीवन पल-पल बीता जाता पल में हँसता जी भर आता मैं तो तब तक जलता जाऊँ जब तक आ ना जाये न जाए विहान। शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान।
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