भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
पल में हँसता जी भर आता
मैं तो तब तक जलता जाऊँ
जब तक आ न जाए विहान ।
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
दीप को अपना सब कुछ मान।
</poem>