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'''लीजिए, अब एक दूसरे रूप में यही कविता पढ़िए'''
इन्तज़ार करो कर, मैं लौटूँगा
इन्तज़ार करोकर, मैं लौटूँगाइन्तज़ार करो तुम कर तू मेराइन्तज़ार करोकर, पीली बारिश में
जब दुख का हो डेरा
इन्तज़ार करोकर, जब गर्मी हो तेज़
जब बर्फ़ गिरे भारी
इक-दूजे को जब भूलें सब
जब ख़त आने भी बन्द हो जाएँ
और थकें सब लोग
इन्तज़ार करो कर तब तुम भी तू मेरामहसूस करो कर वियोग
इन्तज़ार करोकर, मैं लौटूँगा
जब सब भूलेंगे मुझको
उस घड़ी मैं लौटूँगा मेरी जाँ
और याद कर-करके मुझको
सब अपना जाम भरेंगे
जब लौटूँगा दे मौत को धोखा
बस, तेरे कारण ही ज़िन्दा मैं
तूने दिया मौत को फेरा
इन्तज़ार किया मेरा !