भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुम्हीं ने मुझे कैसे दिन-ब-दिन रखा ज़िन्दा ।
कैसे मैं ज़िन्दा रहा, सिर्फ़ हम-तुम जानेंगे, यार -
कि लाजवाब किया है तुमने मेरा इंतिज़ार । मूल रूसी से अनुवाद : अनसतसीया गूरिया
</poem>