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<poem>लगता हैआज रात भर मेँमेंसूरज को किसी ने कुरेद दिया ।दिया।जाने क्योँक्योंआज पौ फुट्ते फटते ही
किसी ने सूरज को
रास्ते पे पर जमे पानी मेँ फेँक दिया ।में फेंक दिया।
कहते हैँहैंयह तो मात्र शुरुवात शुरुआत है।सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखों तक पहुँचना हैसूरज – कल सोचा हुआ पर देखा न हुआ दृश्य,को अब खुलना है।
सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखोँ तक पहुँचना हैसूरज – कल सोचा हुवा पर देख न पाया हुवा दृष्टी,को अब खुलना है । गुसलखाने में कहीँ कहीं बादल बन कर बनकर रहा हुवा हुआ समयसूरज के स्पर्शोँ स्पर्शों को पिघलानेदौड कर दौड़कर बाहर आ रहा है ।है।कहते हैँहैंतूम तुम आ तो चुके हो
लेकिन
अभी खिलना बाकीँ है ।बाकी है।
</poem>
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