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पटकथा / पृष्ठ 1 / धूमिल

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धूप थी
घास थी
मैंने कहा आजादी…आज़ादी…
मुझे अच्छी तरह याद है-
मैंने यही कहा था
वह हमें विश्वशान्ति के और पंचशील के सूत्र
समझाता रहा।
मैं खुद ख़ुद को
समझाता रहा- 'जो मैं चाहता हूँ-
वही होगा।
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