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<poem>
कभी यूँ ही एकाकी मन में
बीच कभी किसी जन संगम में
कभी निराशा की लड़ियों में
या सुख से हंसती अँखियों में
आ जाते हैं ये मनमाने
यादों के चलचित्र सुहाने!

कुछ आते हैं दूर देश से
कुछ के हैं चेहरे अनजाने
कुछ मृगतृष्णा से हाथ न आते
कुछ घने जलद से, हैं रुक जाते
स्मृतियों का सावन बरसाने
यादों के चलचित्र सुहाने!

कहीं खेलता भोला बचपन
मदमाता कहीं दम्भी यौवन
भय से कुछ कम्पित कर जाते
कुछ हैं जो हरदम हरसाते
कुछ भूले बिसरे से अफसाने
यादों के चलचित्र सुहाने!

कुछ के मतलब रोज़ बदलते
कुछ नित नूतन हो मिलते
कुछ में जीवन दर्शन होता
कुछ का रीतापन है खलता
कुछ में दिखते सब दीवाने
यादों के चलचित्र सुहाने!

कुछ आते हैं आमंत्रण पर
कुछ गिरते हैं विद्युत् बन कर
भरने को रिक्त हृदय के गागर
लहराने नयनो में सागर
बीते लम्हों के नजराने
यादों के चलचित्र सुहाने!
</poem>
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