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{{KKRachna
|रचनाकार=को उन
|अनुवादक=कुमारी रोहिणी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तीस साल पहले तक
मेरे ज़हन में थी वे जगहें
जहाँ मैं जाना चाहता था
दस लाख के क्षेत्रफल वाले उस नक़्शे पर
यत्र-तत्र मैं था बिखरा हुआ : एक।
बीस साल पहले तक
थीं कुछ ऐसी जगहें
जहाँ वास्तव में मेरी इच्छा थी जाने की।
मेरी खिड़की की सींकचों से मेरे तक पहुँचने वाला वह नीला आसमान
था मेरा रास्ता ।
इस तरह बहुत दूर तक इधर-उधर जाने में रहा,
मिलती रही मुझे कामयाबी ।
लेकिन मैंने कुछ जगहों को परे कर दिया।
वे जगहें जहाँ मैं
इस दुनिया को छोड़ने के बाद
जाना चाहता हूँ
जहाँ कोई कर रहा होगा मेरे आने का इन्तज़ार ।
कुछ ऐसी जगहें थीं, जहाँ मैं जाना चाहता था
जब फूल झड़े,
जब शाम को पेड़ से फूल झड़े,
मैं सीधा खड़ा हो गया
और मूँद लीं अपनी आँखें ।
'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
</poem>
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|रचनाकार=को उन
|अनुवादक=कुमारी रोहिणी
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तीस साल पहले तक
मेरे ज़हन में थी वे जगहें
जहाँ मैं जाना चाहता था
दस लाख के क्षेत्रफल वाले उस नक़्शे पर
यत्र-तत्र मैं था बिखरा हुआ : एक।
बीस साल पहले तक
थीं कुछ ऐसी जगहें
जहाँ वास्तव में मेरी इच्छा थी जाने की।
मेरी खिड़की की सींकचों से मेरे तक पहुँचने वाला वह नीला आसमान
था मेरा रास्ता ।
इस तरह बहुत दूर तक इधर-उधर जाने में रहा,
मिलती रही मुझे कामयाबी ।
लेकिन मैंने कुछ जगहों को परे कर दिया।
वे जगहें जहाँ मैं
इस दुनिया को छोड़ने के बाद
जाना चाहता हूँ
जहाँ कोई कर रहा होगा मेरे आने का इन्तज़ार ।
कुछ ऐसी जगहें थीं, जहाँ मैं जाना चाहता था
जब फूल झड़े,
जब शाम को पेड़ से फूल झड़े,
मैं सीधा खड़ा हो गया
और मूँद लीं अपनी आँखें ।
'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
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