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ऐसा तो नहीं
कहीं इसलिए तो तुम नहीं चली गई थीं
ताकि मेरी अन्तिम विदाई में तुम्हें आना न पड़े ?
मेरे इस सवाल का जवाब कौन देगा ?
सिर्फ़ तुम ही दे सकती थीं
लेकिन तुम तो बेहद नाराज़ हो ...।
और अगर ऐसा नहीं है ?
कितनी उदासी है मेरे चारों ओर ...
संगमरमर की तरह सफ़ेद और सख़्त है दुख
कितना गहरा, पवित्र और प्रेरक !
चलो छोड़ो इसे, छोड़ें ये बात
हमारे बीच की ज़मीन टूट चुकी है —
अब उसके टुकड़े भी क़ीमती हैं ...।
 
कितनी उदासी फैली हुई है !
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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