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{{KKRachna
|रचनाकार=सुशांत सुप्रिय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जो कहता था
मेरे पास कुछ नहीं है
असल में उसके पास
सब कुछ था
जो कहता था
मैं पूरब दिशा में
जा रहा हूँ
दरअसल वह
पश्चिम की ओर
जा रहा होता था
जो कहता था
मैं पीता नहीं हूँ
उसी के घर से
शराब की सबसे ज़्यादा
ख़ाली बोतलें निकलती थीं
जो इलाक़े के बच्चों में
सबसे ज़्यादा टाफ़ियाँ बाँटता था
वही पकड़ा गया बच्चों के
यौन-शोषण के आरोप में
जो कहता था
लोकतंत्र में हमारी
गहरी आस्था है
वही बन बैठा
सबसे बड़ा तानाशाह
जो पहनता था
सातों दिन सफ़ेद वस्त्र
उसी का मन
सबसे ज़्यादा काला निकला
जो करता था
सबसे ज़्यादा पूजा-पाठ
जो पहनता था
तीसो दिन गेरुए वस्त्र
जो अपने उपदेशों में
नारी को 'देवी' बताता था
वही पकड़ा गया
एक अबला के
शील-भंग के आरोप में
जो आदमी ख़ुद को
गाँधीजी का सबसे बड़ा
भक्त बताता था
जो दिन-रात
'अहिंसा' का जाप
करता रहता था
अंत में वही हत्यारा निकला
</poem>
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जो कहता था
मेरे पास कुछ नहीं है
असल में उसके पास
सब कुछ था
जो कहता था
मैं पूरब दिशा में
जा रहा हूँ
दरअसल वह
पश्चिम की ओर
जा रहा होता था
जो कहता था
मैं पीता नहीं हूँ
उसी के घर से
शराब की सबसे ज़्यादा
ख़ाली बोतलें निकलती थीं
जो इलाक़े के बच्चों में
सबसे ज़्यादा टाफ़ियाँ बाँटता था
वही पकड़ा गया बच्चों के
यौन-शोषण के आरोप में
जो कहता था
लोकतंत्र में हमारी
गहरी आस्था है
वही बन बैठा
सबसे बड़ा तानाशाह
जो पहनता था
सातों दिन सफ़ेद वस्त्र
उसी का मन
सबसे ज़्यादा काला निकला
जो करता था
सबसे ज़्यादा पूजा-पाठ
जो पहनता था
तीसो दिन गेरुए वस्त्र
जो अपने उपदेशों में
नारी को 'देवी' बताता था
वही पकड़ा गया
एक अबला के
शील-भंग के आरोप में
जो आदमी ख़ुद को
गाँधीजी का सबसे बड़ा
भक्त बताता था
जो दिन-रात
'अहिंसा' का जाप
करता रहता था
अंत में वही हत्यारा निकला
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