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<poem>
सूरज की रोशनी बिन
मिटती कोए रात नहीं
सूं धूल गुरु के चरणां की
मेरी कुछ औक़ात नहीं

नौ महीने तक संभाल गरब
जब माँ मेरी नै जाया था
बापू नै करी करड़ी मेहनत
आंगली पकड़ चलाया था
पहले गुरु जन्म के दाता
होवै जीवन की शुरुआत नहीं
सूं धूल गुरु के चरणां की

थारा बालक इब थम्म जाणो
कहै माँ बाबू नै सौंप दिया
था बालकपण नादान अवस्था
जब हाथ गुरु नै थाम लिया
लिखना पढ़ना ख़ूब सिखाया
कदे दे सकै कोई मात नहीं
सूं धूल गुरु के चरणां की

हिंदी अंग्रेज़ी हिसाब किताब
सारे जीवन के सार दिए
संसार समंदर पार करणा सै
तरीके कईं हज़ार किए
ज्ञान का दीप जला मारग मैं
कह्या चल डरने की बात नहीं
सूं धूल गुरु के चरणां की
</poem>
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