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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
दिल में अपने इक दिये-सी लौ जलाकर देखिये।
तीरगी की क़ैद से ख़ुद को रिहा कर देखिये।

भूख कहते हैं किसे ये मुफलिसी क्या चीज है,
मुफलिसों की बस्तियों के बीच जाकर देखिये।

जानने का शौक हो यदि दर्द की गहराइयाँ,
गम किसी का अपने सीने से लगाकर देखिये।

जाम उठाने का सलीक़ा आपको आ जायेगा,
इक दफे बस मैकदे में लड़खड़ाकर देखिये।

जख्म दीवाने के दिल का हो हरा करना अगर,
उसकी जानिब धीरे-धीरे मुस्कुराकर देखिये।

एहतियातन इश्क़ के इज़हार से पहले मियाँ,
मीर की कोई ग़ज़ल इक गुनगुनाकर देखिये।

देखनी नज़दीक से हो शायरों की जिन्दगी,
चार दिन ‘विश्वास’ के घर में बिताकर देखिये।
</poem>
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