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{{KKRachna
|रचनाकार=नलिन विलोचन शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बालू के ढूह हैं जैसे बिल्लियाँ सोई हुईं,
उनके पंजों से लहरें दौड़ भागतीं ।
सूरज की खेती चर रहे मेघ - मेमने
विश्रब्ध, अचकित ।
मैं महाशून्य में चल रहा —
पीली बालू पर जंगम बिन्दु एक —
तट-रहित सागर एवं अम्बर और धरती के
काल-प्रत्न त्रयी-मध्य से होकर ।
मेरी गति के अवशेष एकमात्र
लक्षित ये होते :
सिगरेट का धुआँ वायु पर;
पैरों के अंक बालू पर
टंकित, जिन्हें ज्वार - भर देगा आकर ।
</poem>
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|संग्रह=
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बालू के ढूह हैं जैसे बिल्लियाँ सोई हुईं,
उनके पंजों से लहरें दौड़ भागतीं ।
सूरज की खेती चर रहे मेघ - मेमने
विश्रब्ध, अचकित ।
मैं महाशून्य में चल रहा —
पीली बालू पर जंगम बिन्दु एक —
तट-रहित सागर एवं अम्बर और धरती के
काल-प्रत्न त्रयी-मध्य से होकर ।
मेरी गति के अवशेष एकमात्र
लक्षित ये होते :
सिगरेट का धुआँ वायु पर;
पैरों के अंक बालू पर
टंकित, जिन्हें ज्वार - भर देगा आकर ।
</poem>