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<poem>
कभी आना मुझसे मिलने।
मेरे साथ चुप रहने।
साथ अपने अपने अकेलेपन को बाँटने।
साथ होते हुए भी ख़ुद में रहने।
बिना हाँ ना के उस मौन को प्राथमिकता देने।
मानसिक व शारीरिक रूप से उसे सींचने।
मौन रहते ईश्वर से प्राप्त प्रेम का अनुभव करने।
हृदय के सबसे क़रीब गीतों को, कविताओं को साथ सुनने।
एक दूसरे के प्रेम से हृदय में प्रेम का संचार करने।
कभी आना साथ आँसू बहाने, मौन, तन से, मन से, वचन से।
कभी आना सखी प्रियतम को याद करने।
बस प्रसन्नता न लाना न ही हँसी उल्लास।
मेरे साथ बैठना और उन्हें दिलो जान से याद करना,
ऐसे कि हम एक दूजे का एकाँत बन जाएँ
या कुछ बेहतर उस एकाँत से।
</poem>
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