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Kavita Kosh से
जीवन की उस कठिन घड़ी में तुम किंचित ना घबराना।
'मीत' अँधेरा आए पथ में दीप सदृश तुम जल जाना।।
जब कुरूपता आगे बढ़कर दोष निकाले दर्पण का,
देख समय की तुम निर्ममता पथ विचलित ना हो जाना।
मीत सुलह ना करना जग से हो संभव तो मिट जाना।।
संबंधों के तरु की छाया जब झुलसा दे जीवन को,