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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञान प्रकाश विवेक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ख़ुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो जाऊँगा
देखना, उस रोज़ मैं ख़ुद से बड़ा हो जाऊँगा
मोमिया घर में उठा लाऊँगा उपलों की आँच
आग के रिश्ते से जिस दिन आश्ना हो जाऊँगा
मैं किसी मुफ़लिस के घर का एक आँगन हूँ, मगर
गिर पड़ी दीवार तो फिर रास्ता हो जाऊँगा
अपनी क़ूवत आज़माने की अगर हसरत रही
पत्थरों के शहर में इक आइना हो जाऊँगा.
सच बता आकाश क्या तब भी बुलाएगा मुझे
जब कभी मैं परकटी परवाज़-सा हो जाऊँगा
</poem>
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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञान प्रकाश विवेक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ख़ुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो जाऊँगा
देखना, उस रोज़ मैं ख़ुद से बड़ा हो जाऊँगा
मोमिया घर में उठा लाऊँगा उपलों की आँच
आग के रिश्ते से जिस दिन आश्ना हो जाऊँगा
मैं किसी मुफ़लिस के घर का एक आँगन हूँ, मगर
गिर पड़ी दीवार तो फिर रास्ता हो जाऊँगा
अपनी क़ूवत आज़माने की अगर हसरत रही
पत्थरों के शहर में इक आइना हो जाऊँगा.
सच बता आकाश क्या तब भी बुलाएगा मुझे
जब कभी मैं परकटी परवाज़-सा हो जाऊँगा
</poem>