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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|संग्रह=
}}

<Poem>
मुस्कुराना भी एक चुम्बक है,
मुस्कुराओ, अगर तुम्हें शक है!
::उसको छू कर कभी नहीं देखा,
::उससे सम्बन्ध बोलने तक है।
डाक्टर की सलाह से लेना,
ये दवा भी ज़हर-सी घातक है।
::दिन में सौ बार खनखनाती है
::एक बच्चे की बंद गुल्लक है।
उससे उड़ने की बात मत करना,
वो जो पिंजरे में अज बंधक है।
::हक्का-बक्का है बेवफ़ा पत्नी,
::पति का घर लौटना अचानक है!
'स्वाद' को पूछना है 'बंदर' से,
जिसके हाथ और मुँह में अदरक है।

</poem>