भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<span class="mantra_translation">
::त्रय बार करते जो अनुष्ठान को, शास्त्र विधि से अग्नि का,<br>::ऋक साम यजुः के तत्व ज्ञान व दान यज्ञ विधान का।<br>::निष्काम भाव से चयन करते वे ही, पाते शान्ति को,<br>::जन्म मृत्यु विहीन होकर, शेष करते भ्रांति को॥ [ १७ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::नाचिकेत को यह अग्नि विद्या, स्वर्ग दायिनी ज्ञात्त हो,<br>::जिसे दूसरे वर से तुम्ही ने माँगा था विज्ञात हो।<br>::यह अग्नि विद्या अब तुम्हारे नाम से ही विज्ञ हो,<br>::नचिकेता अब तुम तीसरा वर मांग लो दृढ़ प्रग्य हो॥ [ १९ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::आत्म तत्व का विषय नचिकेता बहुत ही सूक्ष्म है,<br>::सहज ग्राह्य न देवों से बी, ज्ञात अतिशय न्यून है।<br>::यद्यपि प्रतिज्ञ हूँ ऋणी हूँ, पर दूसरा वर मांग लो,<br>::देवों से भी अविदित मर्म है, गूढ़ है, यह जान लो॥ [ २१ ] <br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::नचिकेता प्रिय इस वर को लेकर क्या करोगे मान लो ,<br>::सुत, पौत्र, गौएँ, स्वर्ण, गज, साम्राज्य, अश्व को मांग लो।<br>::तुम आयु इच्छित भोगने की चाहना हो तो कहो,<br>::सब सुलभ, दुर्लभ आत्म तत्व है, बस इसी को मत कहो॥ [ २३ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::भू लोक में जो भोग दुर्लभ, सुलभ सब कर दूँ अभी,<br>::रमणियां दुर्लभ, सहज सेवा समर्पित हों सभी।<br>::नचिकेता प्रिय विश्वानि वैभव, सब तुम्हारे ही लिए<br>::पर मृत्यु बाद की आत्मा का मर्म मत पूछो प्रिये॥ [ २५ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::धन से हुआ कब तृप्त मानव, अर्थ के क्या अर्थ हैं,<br>::अगणित प्रलोभन आपके , मेरे लिए सब व्यर्थ हैं।<br>::शुभ दृष्टि से तो आपकी, धन आयु स्वयं यथेष्ट हैं, इस विषय<br>::अब आत्म ज्ञान का तीसरा, वर ही मुझे तो श्रेष्ठ है॥ [ २७ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
::मरणोपरांत की आत्मा अस्तित्व में है या नहीं,<br>::इस विषय का ज्ञातव्य ज्ञान, कहें प्रभो! इच्छा यही।<br>::वर आत्म ज्ञान का गूढ़, सत्य है, पर यही वर चाहिए,<br>::सब प्रलोभन व्यर्थ मुझको , आत्म ज्ञान ही चाहिए॥ [ २९ ]<br><br>
</span>