भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<table width=40% align=right style="border:1px solid #0099ff"><tr><td align=center><b>पुराने लेख</b></td></tr><tr><td align=center>[[Current events|वर्तमान]] [[नई घटनायें/001|001]] <font color=gray>002 003 004 005 006 007 008 </font></td></tr></table>
==परंपरा का विरोध मौलिकता नहीं: नामवर==
हिंदी के प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने कहा है कि परंपरा का विरोध करना मौलिकता नहीं है। बिना परंपरा विरोध के भी साहित्यकार चाहे तो मौलिक सृजन कर सकते है। फिर सवाल यह उठता है कि हम जिस सृजन को नूतन होने का दावा करते है, सही मायने में क्या वह मौलिक है। यदि नहीं तो मौलिक होने का दावा करना कहां तक उचित है।
डा. नामवर सिंह भारतीय भाषा द्वारा आयोजित आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्म शतवार्षिकी राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा व अनामदास का पोथा में प्रारंभिक पात्रों का विस्तार है। महाकवि तुलसीदास ने भी राम कथा का चित्रण रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली व कवितावली में विभिन्न रूपों में किया है। सभी कथाओं में राम केंद्र में हैं। उन्होंने कहा कि कालजयी कृति हम उसे ही कह सकते है, जिसमें बराबर ताजगी का अहसास हो। यह परम सत्ता के लिए ही संभव है। सौदर्यबोध का मतलब ही है वह कभी मलिन नहीं पड़े।
इस मौके पर ज्ञानपीठ से पुरस्कृत लेखिका महाश्वेता देवी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि शांतिनिकेतन में हजारी प्रसाद द्विवेदी उनके शिक्षक थे। शांतिनिकेतन में सभी उन्हें छोटे पंडित जी कहते थे। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए जिंदगी गुजारी। चाहकर भी वह बेहतर हिंदी नहीं सीख पाई। इसका उन्हें दु:ख है, पर अब इसके लिए कुछ नही किया जा सकता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के पुत्र मुकुंद द्विवेदी ने पिता के व्यक्तित्व विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर महाश्वेता देवी ने द्विवेदीजी पर आधारित पुस्तक अब कछु कही नाहि का लोकार्पण भी किया।
डा. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि मै हजारी प्रसाद द्विवेदी का छात्र रहा हूं और मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है। जिस तरह से पंडित जी का कोई वक्तव्य रवींद्रनाथ टैगोर के बिना पूरा नही होता था, उसी तरह से हमारे लिए भी उनका वक्तव्य मायने रखता है। वरिष्ठ आलोचक डा. रमेश कुंतल मेघ ने कहा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी चंडीगढ़ आने के बाद पंडित जी से आचार्य जी हो गए। उनके निर्माण में चंडीगढ़ का अहम योगदान है और वहां रहते हुए उन्होंने काशी को कभी याद नही किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वभारती के उपकुलपति डा. रजतकांत राय ने कहा कि हिंदी को क्षेत्रिय भाषा के रूप में देखना उचित नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि क्रिकेट 20 में व्यस्त रहने की वजह से वह अन्य विषयों पर ध्यान नही दे सके, इसलिए कभी तैयारी के साथ आने पर वह एक घंटे तक बोलेंगे और जिसे सुनना होकर मुझे आकर सुन ले। संगोष्ठी को लेकर उनकी तैयारी अधूरी थी। भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा. इन्द्रनाथ चौधरी ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. प्रतिभा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि उनका जीवन पर्यत हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ संवाद जारी रहा।
नके निर्माण में चंडीगढ़ का अहम योगदान है और वहां रहते हुए उन्होंने काशी को कभी याद नही किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वभारती के उपकुलपति डा. रजतकांत राय ने कहा कि हिंदी को क्षेत्रिय भाषा के रूप में देखना उचित नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि क्रिकेट 20 में व्यस्त रहने की वजह से वह अन्य विषयों पर ध्यान नही दे सके, इसलिए कभी तैयारी के साथ आने पर वह एक घंटे तक बोलेंगे और जिसे सुनना होकर मुझे आकर सुन ले। संगोष्ठी को लेकर उनकी तैयारी अधूरी थी। भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा. इन्द्रनाथ चौधरी ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. प्रतिभा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि उनका जीवन पर्यत हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ संवाद जारी रहा।