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::::तब तुम्हारे पितामह भी थे
यह सीमा तुम्हारे पितामह की आँकी हुई है
और,वह दूसरी रेखा तुम्हारे पिता की आँकी हुईचाहे पूर्णिमा के चांद की दमकती चांदनी होचाहे अमावस की घनी रातचाहे पौष-माघ की कँपकँपाती ठंडचाहे सावन-भादों की बाढ़ उफ़नाती वर्षातुम्हारे पितामह यहाँ खड़े होकर संगीन से:::::आँकते थे मानचित्र
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