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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रयाग शुक्ल
|संग्रह=यह जो हरा है अधूरी चीज़ें तमाम / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
जो था सोच में
वह नहीं रहा
पूरा का पूरा
शब्द में ।
पर रहे शब्द--
पता देते
उस सोच का ।
</poem>