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कई बरस पहले / प्रयाग शुक्ल

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|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
एक बहुत पुराने काले
 
संदूक पर
 
बैठी हुई स्त्री वह--
 
माँ थी मेरी ।
 
एक लड़के के घर से
 
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।
 
दूर से देखता था मैं
 
संदूक को
 
रहते होंगे
 
कभी मेरे भी कपड़े
 
इसमें, बचपन के ।
</poem>
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