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ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया।
अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है, जिस जानिब दरिया बहता है।अख़रोट का क़द कुछ सहम ग्या गया है
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
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