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Kavita Kosh से
जाओ वहाँ पर जिस जगह दिल चाहें तुम्हारे
नफ़रत के मगर दोस्तो ! दफ्तर दफ़्तर नहीं जाते
इतना नही अच्छा तेरा ये डर मेरे साथी !