भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया<br>
झूठी क़सम से आप का इमान ईमान तो गया<br><br>
दिल लेके मुफ्त ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं<br>उलटी उल्टी शिकायतें रही एहसान तो गया<br><br>
लेकिन उसे जता तो दिया, जान तो गया<br><br>
देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख़ शेख कुछ न कुछपूछ<br>
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया<br><br>
डरता हूं हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरजू बेआरज़ू को मैं<br>सुनसान घर ये क्यूं क्यूँ न हो मेहमान तो गया<br><br>
गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र<br>मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया<br><br> बज़्म-ए-उदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल<br>गो रश्क़ से जला तेरे क़ुर्बान तो गया<br><br> होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवां तवाँ 'दाग़' जा चुके<br>
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया<br><br>