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{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले
}}
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सुख से पुलाकने से नहीं
रबने-खटने के थकने से
सोई हुई है स्त्री,
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|रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले
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सुख से पुलाकने से नहीं
रबने-खटने के थकने से
सोई हुई है स्त्री,
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