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<br>नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमलमति।।
<br>राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि।।
<br>चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजे तजें तनु नहि नहिं संसारा।।
<br>सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।।
<br>बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा।।
<br>तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर।।
<br>कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई।।
<br>दो0दो०-जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।<br>अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु।।35।।बृषकेतु।।३५।।<br>–*–*–<br>चौ०-संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी।।
<br>करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी।।
<br>सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू।।
<br>मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन।।
<br>भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना।।
<br>दो0दो०-सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।<br>तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि।।36।।चारि।।३६।।<br>–*–*–<br>चौ०-सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना।।
<br>रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा।।
<br>राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम।।
<br>सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पत रति रस बेद बखाना।।
<br>औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा।।
<br>दो0दो०-पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।<br>माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु।।37।।चारु।।३७।।<br>–*–*–<br>चौ०-जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे।।
<br>सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी।।
<br>अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा।।
<br>गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला।।
<br>बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना।।
<br>दो0दो०-जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ।<br>तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ।।38।।रघुनाथ।।३८।।<br>–*–*–<br>चौ०-जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई।।
<br>जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा।।
<br>करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना।।
<br>सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला।।
<br>नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि।।
<br>दो0दो०-श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।<br>संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल।।39।।मूल।।३९।।<br>–*–*–<br>चौ०-रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई।।
<br>सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन।।
<br>जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा।।
<br>उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती।।
<br>रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई।।
<br>दो0दो०-बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।<br>नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग।।40।।बारिबिहंग।।४०।।<br>–*–*–<br>चौ०-सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई।।
<br>नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका।।
<br>सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई।।
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