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Kavita Kosh से
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
लहू में ग्ज़र्क़ ग़र्क़ सफ़ीना हो आशनाई का
ज़बाँ है शुक्र में क़ासिर शिकस्ता-बाली के