भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा |संग्रह= }} <Poem> बारिश होने पर लगता है सूखी जी...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=
}}
<Poem>
बारिश होने पर लगता है
सूखी जीभ पर
बताशा घुलने लगा है
लगता है घर का पत्थरपन
धीरे-धीरे पसीज रहा है
जैसे अचानक
डबडबाने लगी हों
ईंट लोहा और सीमेंट
बारिश होने पर लगता है
दरवाज़ों पर वंदंनवार हैं
ताकों में दीपक देहरी पर रंगोली है
लगता है कोई शिखरों के आर-पार
इँद्रधनुष बुन रहा है
बरसों बाद
अपना कोई गले मिल रहा है
रुलाई से अवरुद्ध है कँठ
बारिश होने पर लगता है
मिट्टी सोकर उठ रही है
धीरे-धीरे
कोई नवजात
सपने में हँस रहा है
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=
}}
<Poem>
बारिश होने पर लगता है
सूखी जीभ पर
बताशा घुलने लगा है
लगता है घर का पत्थरपन
धीरे-धीरे पसीज रहा है
जैसे अचानक
डबडबाने लगी हों
ईंट लोहा और सीमेंट
बारिश होने पर लगता है
दरवाज़ों पर वंदंनवार हैं
ताकों में दीपक देहरी पर रंगोली है
लगता है कोई शिखरों के आर-पार
इँद्रधनुष बुन रहा है
बरसों बाद
अपना कोई गले मिल रहा है
रुलाई से अवरुद्ध है कँठ
बारिश होने पर लगता है
मिट्टी सोकर उठ रही है
धीरे-धीरे
कोई नवजात
सपने में हँस रहा है
</poem>